Friday, 5 August 2016

गहराइयाँ

 गहराइयाँ
धुँदलीसी धूप में
उदासी की खनक गूँजती हैं
मेरे दिल की गहराइयाँ
दर्द से तब सुलगती हैं

यूँ उठाके लम्हों की सर्द स्याही
रात पैरों को खिंचती, गुजरती हैं
मेरे दिल की गहराइयाँ
दर्द से तब सुलगती हैं

उजले चाँद की चांदनी में यूँ
परछाईयाँ लिपटती हैं दीवारोंसे
 मेरे दिल की गहराइयाँ
दर्द से तब सुलगती हैं

बोझल  पलकों पे बादल  सपनोंके
अँधेरे में निगाहे किसे ढूँढती हैं
मेरे दिल की गहराइयाँ
दर्द से तब सुलगती हैं

जानते पता हैं हम हर दर्द का
आँसू की लकीरें जिसे पूछती हैं
मेरे दिल की गहराइयाँ
दर्द से तब सुलगती हैं
              - स्वप्नजा
 

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